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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

गीता ज्ञान प्रसार का अभिनव कार्य


फ्री में चाहिए श्रीमद भागवत गीता तो करें एक एसएमएस

श्रीमदभागवतगीता, हिंदू धर्म का महान ग्रंथ। लेकिन कितने हिंदुओं ने पढ़ी है गीता। हो सकता है 50 फीसदी आबादी ने भी कभी नहीं पढ़ी हो। लेकिन अगर आप गीता पढ़ना चाहते हैं तो आप ये महान पुस्तक पा सकते हैं बिना कोई कीमत चुकाए सिर्फ आपको करना होगा एक एसएमएस। इस नंबर पर – 98730-52666 या 98733-57727 इन नंबरों पर एसएमएस में आप अपना पूरा पता भेजें। चंद रोज में आपको गीता की हार्ड बाउंड वाली ( सजिल्द ) प्रति कूरियर या डाक से आपके पते पर निःशुल्क मिल जाएगी।

दिल्ली के यमुना पार इलाके के दिलशाद गार्डन के एक सज्जन पिछले कई सालों से गीता के प्रसार का ये अनूठा अभियान चला रहे हैं। वे नहीं चाहते कि उनका नाम कहीं जाना जाए। फौज से अवकाश प्राप्त और अब अपना फोटोस्टेट का कारोबार चलाने वाले इस श्रद्धालु ने गीता के प्रसार को अपने जीवन का मकसद बना लिया है। अब तक वे देश के अलग अलग राज्यों में कई हजार लोगों को गीता की प्रति भेज चुके हैं। गांवों में जहां कूरियर की सुविधा नहीं है वहां डाक से भेजी जाती है गीता।
एसएमएस करने वालों को गीता की जो प्रति भेजी जाती है उसका हिंदी भाष्य महान संत श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज ने लिखा है। वैसे तो गीता की भाषा-टीका सैकड़ों संतों ने समय समय पर लिखी है लेकिन सत्यानंद जी महाराज अत्यंत सरल हिंदी में गीता प्रस्तुत की है जो कम पढ़े लिखे लोगों को भी आसानी से समझ में आ जाती है। गीता अभियान चलाने वाले ये श्रद्धालु बताते हैं कि वे गीता पढ़कर नास्तिक से आस्तिक हुए। आज से 5000 साल पहले भगवान कृष्ण ने अर्जुन को जो परम ज्ञान दिया वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। गीता अद्भुत आध्यात्मिक ज्ञान वाली पुस्तक है जो लोगों में निराशा का भाव खत्म कर आशा का भाव जगाती है। अगर हमारी ओर से भेजी गीता को पढ़कर किसी के जीवन में सार्थक बदलाव आता है तो यही सच्ची मानवता की सेवा है

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

बुधवार, 19 सितंबर 2012

गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१५ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१८ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१७ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१६ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१४ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१३ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१२ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -११ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१० [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -९ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -८ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -७ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -६ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -५ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]

श्रीमद भगवद गीता अध्याय -४ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -३ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -२ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]


श्रीमद भगवद गीता अध्याय -१ [ हिंदी पद्य अनुवाद ( कविता) ]







मंगलवार, 18 सितंबर 2012

‍गीता महत्व


कल्याण की इच्छा वाले मनुष्यों को उचित है कि मोह का त्याग कर अतिशय श्रद्धा-भक्तिपूर्वक अपने बच्चों को अर्थ और भाव के साथ श्रीगीताजी का अध्ययन कराएँ। 


स्वयं भी इसका पठन और मनन करते हुए भगवान की आज्ञानुसार साधन करने में समर्थ हो जाएँ क्योंकि अतिदुर्लभ मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर अपने अमूल्य समय का एक क्षण भी दु:खमूलक क्षणभंगुर भोगों के भोगने में नष्ट करना उचित नहीं है।

गीताजी का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान करें--

अथ ध्यानम्
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं 
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।


भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।


भावार्थ : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्‍गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्‍गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।